कभी दिल में तन्हाई के बादल घिरते है,
तो मन की कलम से शब्दों का जाल बुन बैठता हु,
खुद को सबसे अलग सबसे तनहा महसूस करता हुआ,
अनजान सी कोई रह थाम बैठता हु,
कभी देखता हु खुद को tasviir के आईने में ,
तो हर दिन एक इन्तहां से जकड़ा खुद को पाता हु,
कभी दिल की तन्हाई में शब्दों के बादल घिरते है,
तो मन की कलम से शब्दों का जाल बुन बैठता हु,
कभी उड़ना चाहता हु खाव्बों के आसमान पे,
तो मजबूरियों से पकड़ा खुद को पाता हु,
जिंदगी की भाग दौर से दूर जब बैठता हु एकांत में ,
तो दिखता है मुश्किल की घडी है और ग़म के किनारे है,
न जाने कहा जाना है और हम किस के सहारे है,
कभी दिल की तन्हाई में शब्दों के बादल घिरते है,
तो मन की कलम से शब्दों का जाल बुन बैठता हु,